Monday 2 November 2009

lancedowne 2


इस स्नो-पॉइंट पे आकर देखा
बड़े से एक पत्थर पे लिखे दो नाम
हाँ नाम जुड़े थे, या जोड़े थे किसीने ।
नाम तो जोड़ दिया,
पर जिस्मों का कोई पता नहीं,
ना ही रूहों का, जाने कितनी पुरानी होगी ।
पता भी नहीं वो दोनों जुड़े होंगे या तनहा ।

मैंने सोचा मैं भी जोड़दूँ तुम्हारा और मेरा नाम
कुछ देर यहीं रह जायेंगे हम
वक्त से नज़रें बचा कर, पास-पास ।
मैंने वहीँ पड़े एक छोटे से पत्थर से
उस बड़े पत्थर पे अपना नाम दोहरा-दोहरा के लिखा ,
एक चिन्ह सा बनाया,
फिर रुक गया ।
तुमने तो अपना नाम ही नहीं बताया था,
क्या लिखता,
खुदा का क्या कोई नाम होता है ?

________

जी करता है कुछ देर और रात की खुली जुल्फें सवारूँ
कुछ खाब और आ जायेंगे हाथों में मेरे।

कुछ देर और नर्म धुप को गुद-गुदी करने दूँ मुझे
भूली हुए कहकहे फिर से गुन्जेंगे मेरे आँगन में ।

कुछ दूर और यादों की रस्सी पकड़कर पीछे उतरूँ
छाले कुछ और पड़ जायेंगे हाथों में ।

कुछ कोपलों से शबनम निचोडून धीरे से
कुछ आँसू आंखों से ऐसे ही बह जायेंगे ।

कुछ देर और चलूँ इन लंबे रास्तों के साथ
कबसे चले हैं जो मेरे कदम शायद कहीं थम जायेंगे।

कुछ देर और खड़ा रहूँ यहाँ इन पहाडों के साथ
जो साँसें सदियों से जिस्म में कैद थे वो फिर से चल पड़ेंगे ।

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