Friday 6 November 2009

lancedowne 3


सुना है दिवाली को पहनते है लोग नए कपड़े
पुराना ही कोई रिवाज़ होगा नए कपड़े पहनने का ।

अब यहाँ इस वीरान वादी में
खामोशियों की बाली के सिवा क्या है ?

तुम्हारे हाथों का बुना हुआ स्वेटर है
पुराना था, अब तो बहुत पुराना हो गया है ।

नज्में नई ज़रूर हैं, पर वो मुझसे दूर ही रहती हैं,
बेहया! हाथों से रुखसत होते ही लिपट जाती हैं कागज़ के साथ ।
ख़ुद के जिस्म से उसका जिस्म ओढ़ देती हैं,
जैसे तुम भी कभी मुझे ओढ़ देतीं थी ।

आसमान का शाल था कला-सा, शीशे जड़े थे, आइना भी था
उसे कोई ले गया कल रात, ये नीला-वाला मुझे नहीं भाता ।

धुंध बहुत है यहाँ, पहाड़ भी अपना लिबास बांटने को तैयार हैं
पर यह बड़ा है, काट के मेरे लायक बना दे, दर्जी भी तो नहीं है ।

पटाखों की गूँज अब हलकी हो गयी है, दिए मद्धम
ये दिवाली भी ऐसे ही गुज़र जायेगी, वक्त के दाने बचे हैं चंद ।

उससे जाकर कहता हूँ, वो तो यहीं है ,
वो ही कुछ आ़राम करे,
मेरा ये जिस्म जलाके रौशनी कर दे,
और मेरी रूह को किसी नए जिस्म का कपड़ा पहनादे ।।

7
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पुराने गेस्ट हाउस के खिड़की से देखा
भूरे-हरे, नीले-पीले, काले-सफ़ेद, पास और दूर से पहाड़ ।
मानो इतवार के मेले में एक कतार में, चुप-चाप सी खड़ी
गाँव की बहुत सारी औरतें
जिनके आँख-नाक, कान-दांत नहीं दिख रहे
बस उनकी जुल्फों पे उडेल हुए
वक्त के अलग-अलग रंग के स्याही दीखते हैं ।

वो जो सबसे पीछे खड़े हैं सफ़ेद से पहाड़,
वो जो कई सालों से चुप हैं,
वो जिनके करीब से अब बस खामोशी ही गुज़रती है
खामोशी से ।
पता नहीं चलता के पहाड़ हैं या सफ़ेद बादल
कौन कहे
बादलों ने अपना बोझ रख दिया
पहाडों के कन्धों पे पल-भर को
या पहाडों ने टिका दिए हैं बादलों के गोदी में
अपने थके-भरी सर को ।

1 comment:

  1. bol to raha he ki khamosi he, tusje wo nila wala chadar nahi bhata,aur behaya bhi kahta he un ko jinka koi kasoor hi nahi...........
    tu ye janta bhi he ki, ye khamosi bahut kuch kahti he tere kano mein, kahin virane mein wo nila chadar bhi bhata he, ghanton bhar takta rahta he aur sawal bhi puchta he... aur wo najm,unke bina tere ye zindgi adhuri he aur tera bajud bhi, behaya kinhe kah raha he, bhale chut kar kagaj mein utar aayein hein to tere pas , tusje akela kabhi nahin chodengi

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