Sunday 25 August 2013

Puraana Akhbaar

अखबार कागज़ पर नहीं छपते,
छपते हैं समय के चेहरे पर,
फिर इनकी कई कापियां बनके
पहुँच जाती हैं हमारे पास
एक आइने की तरह ।
हमारा और हमारे समाज का आइना ।
अखबार, इतिहास का ही पहला स्वरुप होता है ।

अख़बार कटता  है, बंटता है,
जुड़ता और पढ़ा भी जाता है ।
अख़बार हम इंसानों की तरह ही हैं ।
लोग इनका इंतज़ार करते हैं,
मिलने पर खुश होते हैं,
कभी शिकायत भी करते हैं ।
ये कभी अकेलेपन के साथी होते हैं
तो कभी घर की चहल-पहल,
और बात-चीत का ज़रूरी हिस्सा,
चाय इनके बिना फीकी ही लगती है ।

ये हमारी घर की  कुर्सियों को
सीधा खड़ा होना सीखाते हैं ।
सन्डे के पिकनिक में कभी बैठने की या प्लेट रखने की जगह तो
कभी खुद ही प्लेट बन जाते हैं ।
हमारे बच्चे इनसे खेलते हैं,
कभी नाव तो कभी रॉकेट बनाते हैं,
इनपे कलम या रंग चलाते हैं ।
और माँ हर एक-दो महीनो में
घर के सारे अलमारियों पर
पुराने अखबारों को उतार कर
नए बिछा देती हैं है ।
सच ! पुराने अख़बार बड़े काम के होते हैं ।

हमें अखबार बहुत कुछ देते भी हैं ।
काम करने को नौकरी की खबर,
रहने को आशियाने का पता,
और कितनी ही बार
उम्र भर को निभाने को रिश्ते ।
अखबार कभी पुराने नहीं होते ।