छपते हैं समय के चेहरे पर,
फिर इनकी कई कापियां बनके
पहुँच जाती हैं हमारे पास
एक आइने की तरह ।
हमारा और हमारे समाज का आइना ।
अखबार, इतिहास का ही पहला स्वरुप होता है ।
अख़बार कटता है, बंटता है,
जुड़ता और पढ़ा भी जाता है ।
अख़बार हम इंसानों की तरह ही हैं ।
लोग इनका इंतज़ार करते हैं,
मिलने पर खुश होते हैं,
कभी शिकायत भी करते हैं ।
ये कभी अकेलेपन के साथी होते हैं
तो कभी घर की चहल-पहल,
और बात-चीत का ज़रूरी हिस्सा,
चाय इनके बिना फीकी ही लगती है ।
ये हमारी घर की कुर्सियों को
सीधा खड़ा होना सीखाते हैं ।
सन्डे के पिकनिक में कभी बैठने की या प्लेट रखने की जगह तो
कभी खुद ही प्लेट बन जाते हैं ।
हमारे बच्चे इनसे खेलते हैं,
कभी नाव तो कभी रॉकेट बनाते हैं,
इनपे कलम या रंग चलाते हैं ।
और माँ हर एक-दो महीनो में
घर के सारे अलमारियों पर
पुराने अखबारों को उतार कर
नए बिछा देती हैं है ।
सच ! पुराने अख़बार बड़े काम के होते हैं ।
हमें अखबार बहुत कुछ देते भी हैं ।
काम करने को नौकरी की खबर,
रहने को आशियाने का पता,
और कितनी ही बार
उम्र भर को निभाने को रिश्ते ।
अखबार कभी पुराने नहीं होते ।
No comments:
Post a Comment