Monday, 2 November 2009

रिश्ता

क्यों जाऊँ मैं यहाँ,
क्यों जाऊँ मैं वहां ?
काबा-कलिषा, कशी-पुरी
मक्का-अमृतसर, सारा जहाँ ॥ १॥

क्यों चढूं-उतरूँ पहाड़ के पहाड़,
क्यों पार करूँ नाले, टटोलूं गुफा,
क्यों कोई मुझसे कहे
कहाँ तू है और कहाँ तू नहीं ॥ २॥

क्यों करूँ मैं ऐसा या वैसा ?
चौकडी-आसन लागों, आँखे बंद
मत्था टेकून, घुटने जोडूं
सर फोडूं, हाथ जोडूं ॥ ३॥

क्यों करूँ मैं अलग-अलग भेष ?
सर मुंडवाऊं, दाढ़ी-मूंछ बढ़ाऊँ
टोपी-पगड़ी या हिजाब पहनूं
पहनूं हरा-गेरुआ- सफ़ेद बदन पे ॥ ४॥

क्यों करूँ 'वज़ु', गंगा नाहाऊं ?
तेरा नाम लूँ एक-तीन-पाच बार
हर साँस के साथ सोते-जागते क्यों नहीं?
मेरी आह, मेरी नज़्म मेरी दुआ नहीं ? ॥ ५॥

क्यों रोकूँ साँस, छोडूं फिर धीरे-से
क्यों जिस्म पे करूँ इख्तेयार
क्यों दूँ-लूँ मैं बड़े-छोटे दान-धरम
सब कुछ तेरा है, मेरा तो नहीं ॥ ६॥

क्यों किसी एक जुबां से बात करूँ तुझसे,
क्यूँ अदा करूँ नामाज़, मन्त्र-बनी पढूं ?
क्यूँ तारीफ़ करूँ तेरी, भीख मांगूं, गिड़गिड़आऊं
ख़ुद खामोश है, मेरी नहीं समझता ? ॥ ७॥

क्यूँ सुनु मैं इसको या उसको,
मुल्ला-पंडित, गुरु-सिख
तेरे चौकीदार है ? तू तो नहीं पहचानता इन्हे
रहता भी नहीं इनके घर में ॥ ८॥

क्यूँ जाऊँ मैं जन्नत
ये कहते हैं बड़ा हसीं है
भी देखा है इन्होने, ये जायें
मुझे तो बस अपने घर वापिस जाना है ॥ 9॥

क्या देखा है किसीने तेरा चेहरा ?
क्या तू कभी बोला है किसी से ?
आ ! मेरे सर पे हाथ फेर, बोल मुझसे !
अपने ही बच्चे से इतना नाराज़ होता है कोई ? ॥ १०॥

1 comment:

  1. na kanhi jaane ki zarurat he aur na hi bhes badlneki
    na kise se kuch sunne ki zarurat he aur na kise se kuch kahneki
    woh jise tu dhund raha he tere dil me basta he ,lahu be bahta he,teri dhadkanon ko sunta he,tere rom rom mein samaya hua he aur pal pal tusje mahsus karta he

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