Saturday, 31 July 2010
Ek Aur Trasadi
'Hazra Bee' points to the coninuing pollution and contamination of ground and water by the abandoned plant of UCIL which still has 690 tonnes of toxic chemicals in the dumping yard which soaks into the breast and womb of Bhopal's women and the second generation of children in Bhopal are born with mental and physical challenges..
'Chacha' is the story of thousands of persons who came under the cloud of the poisonous gas who were left to live a long life marred with permanent, irreversible damages and diseases. People who could not earn their livelihoods and forced to live a life of poverty and helplessness.
'Wo Bacche' is the story of the girls who were born or affected by the gas. The unsaid and hushed talks regarding problems related to periods, birth complications, cancer etc. and how it has bcome a curse for the girls from Bhopal.
Please write to me at das(dot)parthajeet(at)gmail(dot)com to get a copy of the play to perform it and spread awareness. Knowledge is power!
Wednesday, 21 July 2010
maa
बस तेरी ही गोद में सोना चाहता हूँ ।
लिहाफ ओढ़ता हूँ तो लगता है
इसके अन्दर घुट के मर जाऊंगा,
तेरा आँचल मेरे चेहरे पर ढक दे माँ ।
ज़माने खुरचते है मेरे हात पैर,
ग़म नोचता है यादों के नाखूनों से
मेरा दिल-ओ-दिमाग,
मेरे सीने पर अपना तू हाथ तो फेर माँ ।
सूने घर में अपनी ही आवाज़
सुनकर चौंक जाता हूँ ।
और घबराहट में जब कुछ नहीं सूझता
तो अपने में सिमट कर सो जाता हूँ
जैसे कभी तेरे गर्भ में था
मेह्फूस और मासूम ;
तेरी क़दमों के आहट से लेकिन
मुझे आज जगने दे माँ ।
जिसके जी में जो आता है
वो वही नाम लेकर बुलाता है मुझे,
तू बस एक बार फिर
'बेटा' कहकर तो पुकार माँ ,
तू बस एक बार फिर
'बेटा' कहकर तो पुकार माँ ।
बस दस मिनट की देर कर दी माँ ने आने में , मैं गेस्ट-हाउस में उनका इंतज़ार कर रहा था । यह नज़्म उसी देर से मुकम्मिल हुई है । माँ देर भी करती है तो...
Tuesday, 20 July 2010
bhopal 2
please wait for a detailed travelogue and a play on Bhopal Gas Tragedy 'एक और त्रासदी'
1
dedicated to the age of self-promotion (starting from yours truely)
फूल का काम है
खिलना; बस इतना ।
उसकी खुशबू को
सारे जहाँ में बिखेरना,
हवा का काम है ।
उसके रस को मधु बनाकर,
सबके जुबान को मीठा करना,
भँवरे का ।
और उसके रंगों का बन आइना,
उसके चेहरे से सबको रूबरू कराना,
काम है आसमान का ।
फूल का काम है खिलना;
बस इतना!
2
यह बारिश की सौंधी-सौंधी महकती आवाज़
और उसके बीच कौंधती हुई बीजली ।
जैसे दोपहर में थकी-हारी
माँ को सोते देख
मुंह छुपा कर हँसते हुए बच्चे ।
आसमा के ठिठुरते जिस्म पर
रात का कम्बल ओढने से पहले
रेशमी बादलों का शाल
ओढ़ दिया हो जैसे किसीने ।
पहली बारिश में धुले हुए
तेरे गीले जुल्फों से
ये काले रस्ते ,
कहाँ तक चलती हैं ?
इस शहर के सूने चौराहे
भी अजीब हैं,
जिस भी रास्ते पे चलता हूँ
तुम तक ही पहुँचती हैं ।
Friday, 16 July 2010
untitled
a cloud would come and rest her head over my shoulders
and say - so what if you can't move;
so what if you can't break your vow of silence;
i will speak to you....
i will come to you again and again,
as it means the world to me
to find you at the same place,
always, true to your words and nature
unchanging like everything else
unmoved and constant
'but you will leave me soon,
won't you?'
i ask.
'you see just that!,
have you ever thought
why do i leave?
why do i roam all over the world
along with the tireless wind
far, far and farther from you,
missing you, pining for you?
when i can't bear it anymore
my tears come down as mighty rains
and that it the one time,
the one single time
that i get to embrace you,
soak in you
and loose myself in your bosom
my beloved!"
Monday, 12 July 2010
Saturday, 10 July 2010
dedicated to friends who are not discussed here
ये कैसे यार बनाये मैंने, यारी से जो बचते रहे,
मैं तड़पता रहा उनको, वो और तड़पाते रहे ।
अपना जशन-ए-कामयाबी, अपनी दिवाली, अपना ईद
न कोई ग़मगुसार हो, अपना ग़म ख़ुद सहते रहे ।
यारी में न होती है खुदी, न गिले, न शर्म-ओ-हया
जब तलग न बुलाया हमें 'मेहमान' घर उनके हम जाते रहे ।
आने का वादा कर भूल गए वो सालों से
राह में उनकी मगर हम दिए जलाते रहे ।
ज़ालिम वो नहीं, मेरे हाल से बेखबर भी नहीं
खुद कभी न आये वो, पैगाम ज़रूर भेजते रहे ।
जब था बस उनका सहारा, उन्हें अपना काम याद रहा
सिर्फ अमीरों को वो रस्म-ए-वफ़ा याद कराते रहे ।
मैं बयां करूँ, वो सुने ये किस्मत नहीं 'पार्थ'
अपने गिले-शिकवे बेजुबान सफहों को सुनाते रहे ।
tera khayal
सुखाने के लिए घर के तारों पर टांगा,
फूँक-फूँक कर रौशनी को
उम्मीदों के अंगारों पर जिंदा राखा ।
हवा और गर्द, जो दूध और पानी की तरह
मिल चुके थे- जुदा किया,
तन्हाइयों के भारी बोझ
झूठ के बिस्तर तले छिपाए ।
बिखरे पड़े जिस्म को
बिखरे, बेतरतीब लिबास पहनाये,
यादों के जालों को
आज के ख्यालों के पैराहन से पोंछा ।
खुदा को उसकी जगह पर
फिर उठा कर बिठाया,
रोज़ बिठाता हूँ
रोज़ जाने कैसे जीर जाता है ?
जज़्बात, जो किताबों में कैद
बुकमार्क्स की तरह बंद पड़े थे
उन्हें अपने हाल से निजात दिलाया
साँसे उधार दीं
तन्नूर सुलगाया, गर्म किया
हसरतों को गूंदा ,
गुफ्तगू के रोटी पकाए,
शाम के थाल में अपना दिल फिर परोसा
तू न आये
तेरा ख्याल तो आये ।
Wednesday, 7 July 2010
somethin amiss
i don't realise
like your precious tears;
and the scent of your hair;
when i woke up to your whispers;
like the support of your hands;
like the joy of your laugh;
like the echo of our footstep
miss u
like i miss u
Tuesday, 6 July 2010
untitled
कोई शायर अनजाने ही आये
किसी तोहफे कि तरह
किसी नज़्म को एक सफ्हे पे लिखकर
बहुत संभाल के रखकर भूल गया हो जैसे ।
तेरा मेरा रिश्ता भी
ऐसे ही रह जाये कहीं भुला हुआ,
न तू उसे ढूंढे
न मैं फिर से उसे याद करूँ ।
Saturday, 3 July 2010
apocalypse
To care for mw and tell
By your simple gestures and voice
How much you love me.
The moment I will receive a silence
In response to my commotion
Of irritation, arrogance, angst,
Small victories and big failures.
When I will wait for your smiles
To fill up like clouds,
The blank sky of my days
And draw pictures of existence and joy.
When you will not be there with me
Or I would have had to leave you,
How would this life drag me like a prisoner
And if I would miss you as much as I do.