Tuesday, 6 July 2010

untitled

कोई शायर अनजाने ही आये

किसी तोहफे कि तरह

किसी नज़्म को एक सफ्हे पे लिखकर

बहुत संभाल के रखकर भूल गया हो जैसे ।

तेरा मेरा रिश्ता भी

ऐसे ही रह जाये कहीं भुला हुआ,

न तू उसे ढूंढे

न मैं फिर से उसे याद करूँ ।

1 comment:

  1. I've read this one a lot of times and will continue to do so...i guess these lines make it timeless:

    न तू उसे ढूंढे
    न मैं फिर से उसे याद करूँ

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