For those who are familiar with Lancedowne phenomenon, please do not expect an encore of poetry and themes that were discussed then. The two day trip can be divided into two distinct parts - as distinct as the two (for now) persons that are inside me. Credits - Indian Railways, Bhopal, My sister and her beautiful campus, Parents (especially Maa), Prenu and Monsoon.
please wait for a detailed travelogue and a play on Bhopal Gas Tragedy 'एक और त्रासदी'
1
dedicated to the age of self-promotion (starting from yours truely)
फूल का काम है
खिलना; बस इतना ।
उसकी खुशबू को
सारे जहाँ में बिखेरना,
हवा का काम है ।
उसके रस को मधु बनाकर,
सबके जुबान को मीठा करना,
भँवरे का ।
और उसके रंगों का बन आइना,
उसके चेहरे से सबको रूबरू कराना,
काम है आसमान का ।
फूल का काम है खिलना;
बस इतना!
2
यह बारिश की सौंधी-सौंधी महकती आवाज़
और उसके बीच कौंधती हुई बीजली ।
जैसे दोपहर में थकी-हारी
माँ को सोते देख
मुंह छुपा कर हँसते हुए बच्चे ।
आसमा के ठिठुरते जिस्म पर
रात का कम्बल ओढने से पहले
रेशमी बादलों का शाल
ओढ़ दिया हो जैसे किसीने ।
पहली बारिश में धुले हुए
तेरे गीले जुल्फों से
ये काले रस्ते ,
कहाँ तक चलती हैं ?
इस शहर के सूने चौराहे
भी अजीब हैं,
जिस भी रास्ते पे चलता हूँ
तुम तक ही पहुँचती हैं ।
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