Monday, 7 December 2009

lancedowne 5

नज़्म तो बन गयी है,
पर अभी दो लाइने बाकि है ।
वो सबसे ऊपर जहाँ टाइटल की जगह होती है,
और एकदम नीचे जहाँ शायर का नाम होता है ।

अब कैसे एक टाइटल दूँ इसे ?
कौन से नाम से पुकारूँ ?
ये तो ख़ुद चलके आई थी मेरे पास
सहमी-सी, आखों में मेरे लिए प्यार लिए,
ख्यालों की पालकी में बैठ कर ।
उन ख्यालों के ही नाम दे दूँ ?
पर एक होता तो न , कितने ही हैं,
किस -किस का नाम दूँ ?
न जाने अपने जिगर के टुकड़ों को
माँ-बाप कैसे एक ही नाम दे देते हैं ?
हर दिन , हर पर, हर हरकत पे
एक नया नाम देने का मन नहीं करता ?


शायर कौन है अब ? नाम क्या है उसका ?
सारे ही हैं यहाँ, जिसको देखता हूँ वही हकदार लगता है ।
किसी पेड़ की डाली से मैंने
यादों के पीले पत्तों को टटोला है ।
आसमान ने अपने कितने ही रंग
भरे हैं मेरे स्याही में ।
रात भर सुलगती हुई लकड़ी ने
मुझे टाटा है , जिंदा रखा है ।
पत्थरों को उठा कर पुराने
ज़ख्म खारोचे हैं ।
सपनो को बादलों की कश्ती में
बिठा कर सैर कराया है ।
इतने नाम तो नहीं लिख सकता ,
अपना ही लिख देता हूँ ।
पर क्या नाम है मेरा और
क्यों कोई नाम हो मेरा ?

शायर बेनाम होता तो अच्छा होता
न कभी नाम होता,
न ही कभी बदनाम ।
शायर का अपना भी तो कुछ नहीं
नाम भी नहीं ।
अब, ऐसे ही छोड़ देता हूँ - खाली,
किसी का तो नाम हो , उसका ही सही ।

1 comment:

  1. are yaar ye kya kar raha tu
    lawaris kyon chod raha he enhe tu
    dukh nahi haga? jag tere in behad kimti aur khubsoorat khwabon ko rond de koi,
    es luteron ke bazzar me kai chor bhi he
    bech denge teri in yadon ko.
    jo kabhi saja karti thihansi bankar tere chehre par
    jo kabhi jhula kartin thi tere palkon pe
    jo kabhi rashan kartin thi teri sam taren bankar
    jo kabhi jagati thi tujhe bhor ki thandi hawa bankar
    eise hi chod chala jayega?
    puchengi kai saawal , to kya jawab dega?
    laakh samjha le ,phir na aaengi tere paas ye



    'me tera aur tu mera'
    kyon bhaiya jud gaya na ek naam

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