Monday, 7 December 2009

तेरी मांग

ये जो सीधा, साफ़-सा रास्ता
काले जंगल के बीच से उसकी
गहराई को चीरता हुआ निकलता है
कितना वीरान है देखो ।

मायूस, अब इंतज़ार भी नहीं
किसी के क़दमों के चोट की
औंधे मुह आए एक आंधी ने
सारे चिन्ह मिटा दिए कल के ।

कभी इसपे भी उम्मीदों के दूब उठ जाते थे
भोर की अलसाई किरणों को
छूने को अपने नन्हे हाथ भी बढ़ाते थे
आज आँसूओं से धुला बस सफ़ेद धुल बिखरा है ।

एक सैलाब ही भर सकता है
इस वीरान से रास्ते का सीना,
किसी के वजूद का निचोड़ा हुआ
सुंदर, पाक, लाल अब्र का सैलाब ।

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