Saturday, 25 September 2010

your memories

i put out the wet balanket
of darkness, to dry
on the balcony of my house.
the embers of hope
i kept alive,
by placing my warm hands
over moist eyes.
i separated dust and wind,
that were as entagled
with each other as milk and water.
heavy lumps of loneliness,
i hid under the sheet
of falsehood.
scattered and restless body
of mine, i clothed with
scattered and careless clothes.
cleared all cobwebs of memories,
by the duster
of today's thoughts and activity.
God, I put back
at His place,
Everyday I put Him on His place
Everyday but He falls down
so low.
I released the emotions,
Now, incarcerated in books
as bookmarks.
Lent them
the wings of my breath
To fly.
I put the oven on;
waited for it to get warm;
mixed the flour of eagerness;
baked our conversations;
and served my heart
on the plate of the evening,
if not you my beloved
let your thoughts come.

This poem is a free translation of "Tera Khayal" posted on this blog before.

Sunday, 19 September 2010

again untitled

ये जो सीधा साफ़-सा रास्ता,
काले जंगल के बीच से उसकी
गहराई को चीरता हुआ निकलता है,
कितना वीरान है देखो ।

मायूस, अब इंतज़ार भी नहीं
किसी क़दमों के चोट की ,
बिन बुलाये आँधियों ने मिटा दिए
सारे चिन्ह बीते हुए कल के ।

कभी इस पर भी उम्मीदों के तिनके उग जाते थे
और अलसाई किरणों को छूने को
अपने नन्हे हाथ बढ़ाते थे ;
आज आंसुओं के सफ़ेद मोती बिखरें हैं बस ।

एक सैलाब ही भर सकता है अब
इस वीरान से रस्ते का सूनापन ।
किसी के वजूद का निचोड़ा हुआ
सुन्दर, पाक, लाल अब्र का सैलाब ।

Thursday, 16 September 2010

untitled:suggest

poem written in two parts.
the first part was written much before the incident that triggered off the second one.
sometimes poetry follows life...sometime life follows poetry!!
-part 1-
तुम्हारी रात सी खुली जुल्फों से कह दो
यूँ हवा में लहराते हुए , झूमते हुए
मुझे न सताएं , न डराएं .

कहते हैं "हम तो लम्बे होते -होते
इस शहर के रास्तों से भी लम्बे हो जायेंगे
तुझसे , तेरे घर से , मोहल्ले से आगे निकल जायेंगे "

"तू कहता है बड़ा सब्र है तुझ में !
हम भी ले कर देखेंगे तेरा सब्र-ए-इम्तेहान
अपना रंग हम भी बदल कर देखेंगे "

लगता है , मैं अगर कायम रहा
तो तेरी ये रेशमी जुल्फें ही मेरे गले
के सख्त फंदे बन मुझे निजात दिलाएंगे .

-part 2 -

चौंक गयी थी तुम उसे देखकर
मैं भी चौंका था .

कभी सामने आता तो कभी छुप जाता था वो .
जुदा कर दिया उसे अपने घर से तुमने , मैं तो वैसे भी खुश था .

अब काले बादलों के बीच
एक चांदी की तार सी बिजली कितनी सुन्दर लगती है
क्या बुरा था अगर तुम्हारी एक ज़ुल्फ़ ने
अपना रंग बदल लिया था !
--

tanhai? suggest a better title please

तन्हाई के साथ इतनी गहरी रातें
और लम्बे दिन काटे हैं कि
अब तो इस तन्हाई के बिना तन्हा लगता है .

ज़ालिम की मेहर तो देखो, देती है ग़म
मगर गमगुसार कोई नहीं .
होटों पर देती है हंसी,
पर बाँट सको, कोई ऐसा हम दम नहीं .

यादों की भीड़ अब कबाड़ी के सामन की तरह
इर्द-गिर्द जमा हो गए हैं .
कभी-कभी उम्मीदें भी टूटे दीवारों
से धुप की तरह झांकते हुए अन्दर आते हैं .

कभी-कभी तुम भी उम्मीदों की तरह
चुपके से इस घर में आओ तो ,
इसी की रजा चलती हैं अब मेरे घर पे,
अपने सौत से तुम्हे जलन नहीं होती ?

Friday, 3 September 2010

dedicated to a busy week at work

bahut chaha humne ki
humaara kaam hi
humara nasha ban jaye

woh to na hua
par mera nasha hi
ab mera kaam ban reh gaya hai