हर रात एक झूठे वादे की तरह
भूल जाने की तस्सली देती है ।
और हर सुबह, मार के तमाचा
याद दिलाती है की तुम याद हो ।
अब तो इन सफ्हों पर
नज़्म लिखते डर लगता है ,
कहीं ये पत्थर न बन जाएँ
और मैं कैद न हो जाऊं
अपने लफ़्ज़ों के ही साथ
इनमे सदियों के लिए,
इतिहास की तरह ।
तुम्हारा क्या है?
तुम तो चल दोगे हवा के साथ
सूखे, हलके धुल की तरह ।
Hi! Partha
ReplyDeleteThe second part of the poem has come out very well. In the last line there are minor spelling mistakes - In the word 'Halke' it's 'aadha L' & in 'dhool' it is 'bada U'. How about 'Tumhari Yaad' as title?
amrita