Thursday, 27 May 2010

suggest a title please

हर रात एक झूठे वादे की तरह
भूल जाने की तस्सली देती है ।
और हर सुबह, मार के तमाचा
याद दिलाती है की तुम याद हो ।

अब तो इन सफ्हों पर
नज़्म लिखते डर लगता है ,
कहीं ये पत्थर न बन जाएँ
और मैं कैद न हो जाऊं
अपने लफ़्ज़ों के ही साथ
इनमे सदियों के लिए,
इतिहास की तरह ।
तुम्हारा क्या है?
तुम तो चल दोगे हवा के साथ
सूखे, हलके धुल की तरह ।

1 comment:

  1. Hi! Partha
    The second part of the poem has come out very well. In the last line there are minor spelling mistakes - In the word 'Halke' it's 'aadha L' & in 'dhool' it is 'bada U'. How about 'Tumhari Yaad' as title?
    amrita

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