Saturday 8 May 2010

sauda

बड़े घाटे का सौदा रे,
सौदा बड़े घाटे का रे ।
हाथ लिए गेहूं,
मोल दिए आटे का रे ।

जो कुछ भी माँगा,
पल में गवाया,
फिर मांगने तेरे
द्वार मैं आया ।
माया मरी न
तृष्णा मरी,
देह मरा पर
यह मन न मरा रे
बड़े घाटे का सौदा रे
सौदा बड़े घाटे का रे । । । १। ।


चैन गवाया, बुद्धि गवाई
बदले में चिता-सी चिंता पाई।
इस दौड़-धुप में क्या पाया मैंने
और कौन मुझसे छुटा रे
बड़े घाटे का सौदा रे
सौदा बड़े घाटे का रे । । २। ।

ध्यान छुटा, मेरा भजन छुटा
विषयों के बाज़ार आकर
मेरा तकदीर फूटा ।
कीमत न जानी कैसा अभागा
सोने को मैंने माना सुहागा
इसकी सुनी मैंने उसकी सुनी
गुरु ज्ञान पे न ध्यान धरा रे।
बड़े घाटे का सौदा रे
सौदा बड़े घाटे का रे


तोता भी रट रट के राम का नाम सीख लेता है। सतगुर कबीर जी को पढ़, सुनके ही यह बन पाया है , उन्ही को अर्पित है ।

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