Monday, 30 August 2010

tera mera rishta

कोई शायर अचानक ही आये
किसी ख्याल के तोहफे को
एक नज़्म का लिबास पहना कर,
किसी सफ्हे पे लिखकर, बहुत संभाल कर
कहीं रख कर भूल गया हो जैसे ।

या कोई गवैया कोई सहर का राग
शब् में गुनगुना कर, डर के चुप हो कर,
उसे याद कर भी
याद ना कर पा रहा हो जैसे ।

या कोई साकी कोई जाम बना कर,
किसी शराबी की कहानी में
अपनी कहानी सुनकर,
अपना होश और जाम
दोनों खो बैठा हो जैसे ।

तेरा मेरा रिश्ता भी ऐसे ही
रह जाये कहीं भूला हुआ
ना तू उसे ढूंढें फिर से
ना मैंने उसे रात भर याद करूँ ।

this is not a completely new poem. i had left out the middle two stanzas. thanks to two friends - one for being a huge fan of the first and last stanzas and the other for encouraging to write the other two. waiting for them to read and get back. thanks for title suggestion.

No comments:

Post a Comment