Wednesday, 11 August 2010

रात का चेहरा


रात का एक चेहरा होता है,
और हर चेहरे का एक अक्स होता है,
कभी तुम रात में होती हो,
कभी तुम में रात होती है ।

रात के सीने पर हाथ रख कर देखो,
वो धड़कता भी है, दर्द से तड़पता भी है,
और रात के आँखों गौर से देखो तो आंसूं हैं
जो पहाड़ों पर पड़ी शबनम होती है ।
कभी तुम रात में होती हो,
कभी तुम में रात होती है ।


रात की चाह को तो देखो
के सहर तक, सहर के इंतज़ार में सुलगती है
और ज़फ़ा-ए-सेहर का क्या कहें
कि उसके आने से ही रात राख होती है ।
कभी तुम रात में होती हो,
कभी तुम में रात होती है ।


हवा में खुशबू के रंग
और पत्तों कि मौसिकी होती है
तारों की रौशनी में, चाँद की याद में
रात जब नज़्म कहती है तो बारिश होती है .
कभी तुम रात में होती हो,
कभी तुम में रात होती है ।


रात बेजुबान नहीं
रात बेज़ार भी नहीं, हर बात सुनती है
कभी रात के साथ पूरी रात गुज़ार के देखो
हर रात की अपनी एक कहानी होती है ।
रात का एक चेहरा होता है
और हर चेहरे का एक अक्स होता है
कभी तो तुम रात में होती हो,
और कभी तुम में रात होती है ।

acknowledging the 'khaloos' (sincerity) of a good friend in editing, vocabulary and other valuable contributions including the title.

the pic was taken by me at rishikesh and the poem was written at bhopal. incidental.

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