कोई शायर अचानक ही आये
किसी ख्याल के तोहफे को
एक नज़्म का लिबास पहना कर,
किसी सफ्हे पे लिखकर, बहुत संभाल कर
कहीं रख कर भूल गया हो जैसे ।
या कोई गवैया कोई सहर का राग
शब् में गुनगुना कर, डर के चुप हो कर,
उसे याद कर भी
याद ना कर पा रहा हो जैसे ।
या कोई साकी कोई जाम बना कर,
किसी शराबी की कहानी में
अपनी कहानी सुनकर,
अपना होश और जाम
दोनों खो बैठा हो जैसे ।
तेरा मेरा रिश्ता भी ऐसे ही
रह जाये कहीं भूला हुआ
ना तू उसे ढूंढें फिर से
ना मैंने उसे रात भर याद करूँ ।
this is not a completely new poem. i had left out the middle two stanzas. thanks to two friends - one for being a huge fan of the first and last stanzas and the other for encouraging to write the other two. waiting for them to read and get back. thanks for title suggestion.
Monday, 30 August 2010
Wednesday, 11 August 2010
रात का चेहरा
रात का एक चेहरा होता है,
और हर चेहरे का एक अक्स होता है,
कभी तुम रात में होती हो,
कभी तुम में रात होती है ।
रात के सीने पर हाथ रख कर देखो,
वो धड़कता भी है, दर्द से तड़पता भी है,
और रात के आँखों गौर से देखो तो आंसूं हैं
जो पहाड़ों पर पड़ी शबनम होती है ।
कभी तुम रात में होती हो,
कभी तुम में रात होती है ।
रात की चाह को तो देखो
के सहर तक, सहर के इंतज़ार में सुलगती है
और ज़फ़ा-ए-सेहर का क्या कहें
कि उसके आने से ही रात राख होती है ।
कभी तुम रात में होती हो,
कभी तुम में रात होती है ।
हवा में खुशबू के रंग
और पत्तों कि मौसिकी होती है
तारों की रौशनी में, चाँद की याद में
रात जब नज़्म कहती है तो बारिश होती है .
कभी तुम रात में होती हो,
कभी तुम में रात होती है ।
रात बेजुबान नहीं
रात बेज़ार भी नहीं, हर बात सुनती है
कभी रात के साथ पूरी रात गुज़ार के देखो
हर रात की अपनी एक कहानी होती है ।
रात का एक चेहरा होता है
और हर चेहरे का एक अक्स होता है
कभी तो तुम रात में होती हो,
और कभी तुम में रात होती है ।
acknowledging the 'khaloos' (sincerity) of a good friend in editing, vocabulary and other valuable contributions including the title.
the pic was taken by me at rishikesh and the poem was written at bhopal. incidental.
the pic was taken by me at rishikesh and the poem was written at bhopal. incidental.
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