Saturday, 27 March 2010

untitled

शिकवा है, सवाल कोई
महसूस करने का खौफ नहीं
हर एहसास को एहसास-भर जिया है

तेरे दिए हर एक ग़म के रेशे को
बड़े जतन से एक-एक कर जिया है
लम्हों में पिरोया है ।

बहुत चाहा, कोशिश भी की
कोई और तस्वीर बन जाये इस चादर पे,
पर तेरा ही चेहरा उभर आया है ।

अब जो बन गया है, वो कभी बिखरेगा भी,
मुझे भी साथ लेगा,
ये चादर मेरा कफ़न बन गया है ।

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