Saturday, 27 March 2010

untitled

शिकवा है, सवाल कोई
महसूस करने का खौफ नहीं
हर एहसास को एहसास-भर जिया है

तेरे दिए हर एक ग़म के रेशे को
बड़े जतन से एक-एक कर जिया है
लम्हों में पिरोया है ।

बहुत चाहा, कोशिश भी की
कोई और तस्वीर बन जाये इस चादर पे,
पर तेरा ही चेहरा उभर आया है ।

अब जो बन गया है, वो कभी बिखरेगा भी,
मुझे भी साथ लेगा,
ये चादर मेरा कफ़न बन गया है ।

Sunday, 7 March 2010

हम

नाम सुना होगा पहले,
कोई चेहरा भी
ख्यालों के कैनवास पर उतारा होगा,
तस्वीर जब देखी होगी
या तो मायूस होगी
या ही मुस्काया होगा ।

जब आवाज़ सुनी थी पहली बार
जाने कैसे कैसे उन शब्दों को कहते हुए
मेरा चेहरा, मेरे हाथ, मेरी हँसी,
मेरे होंठ, मेरा एक - एक भाव
तुमने मेरे साथ महसूस किया होगा ।

लोगों से भी सुना,
जो मैंने किया या नहीं किया होगा ।
मेरी नज्मों को भी बार-बार पढ़ा होगा
और हर लाइन से मेरी पेंटिंग पूरी की होगी ।

मुझसे जब मिली,
तो मेरी जिस्म से ज्यादा
मेरी आखों में देखा होगा -
कहते है रूह का आईना होते हैं ।
मेरी बातों से ज्यादा
मेरी साँसों को सुना होगा ।
मेरा हाथ पकड़ कर मेरी धडकनों की
बेताबी को समझा होगा ।
मेरी मुस्कान में छिपे ग़म
और आसुओं में छलकती खुशी को भी ढूंढ निकला होगा ।

जाने तुमने क्या देखा
जाने तुमने क्या नहीं देखा होगा,
मुझसे मेरा पता पूछो तो
तुम्हारी कसम - मैं भी उतना ही बेखबर हूँ
पर जानना चाहती हो तो
ता-उम्र मेरे साथ 'हम' बनके रहना होगा ।

i don't know i guess the title isn't the best..pls suggest in comments

Tuesday, 2 March 2010

probability

a second here and an accident missed,
a second there and a life turns dead,
a turn it took to catch a glimpse of you in crowd,
a push to loose your hand and you.

a dream it took to sleep from 'what is'
to 'what could have been',
a nightmare to wake up to 'what is'
from 'what should have been'.

is it all due to some action-reaction of mine
or even some inaction?
or it was all planned and patterned for me to act out
only know i did not.

what is do is what i do on my own
or forced upon by some director mighty
whom should should i put it all on
lines of fate, 'karma', god or probability?