Sunday, 2 September 2012

besharm shayar


bada hi besharm hai ye shayar,
log kehte hain,
apne zakhm chupa lo,
duniya dekhegi to hasegi, mazaak udaegi,
kamzori ka fayeda bhi uthaegi.
par dekho, ye to apne zakhmon ko apne nazmon mein utar kar
unhe dikhata, padhta aur sunata phirta hai duniya mein.
 
sari kharashein saaf nazar ati hain iski
kyon na ho
pairahan jo halke shabdon ka hai?
ab khaab aur khaak ke beech ka faasla
is shayar ke hothon jitna hi hai.
uska dil aur chehra hi to wo safhe hain
jin par wo khoon-e-jigar ki syahi chipkata hai
bada besharam hai ye shayar
apne ruh ko jala kar din karta hai
apne nazmon mein apni raatein kaat-ta hai

Saturday, 1 September 2012

है


क्या आप उसे जानते हैं ?
उसे जिसका कोई रूप नहीं है, जिसका कोई नाम भी नहीं है . 
जो कहीं से आया नहीं है और जिसे कहीं जाना भी नहीं है . 

जिसने आकाश और पृथ्वी पर बिखरे रंगों की होली को देखा, 
पर वह दृष्टी नहीं है . 
जिसने कोमल और कठोर शब्दों के निनाद को सुना 
पर श्रवण शक्ति वो नहीं है . 
प्रिय-अप्रिय गंधों का अनुभव किया 
पर वो घ्राण नहीं है . 
सारे रसों का आस्वादन किया 
पर वो रसना नहीं है . 
जड़-चेतन सभी को छुआ 
पर स्पर्श का अनुभव भी वो नहीं है . 

सुन्दर और वीभत्स विचारों को उसने देखा 
पर चंचल मन नहीं है वो . 
स्थूल-सूक्ष्म वस्तुओं को जांचा-परखा
पर वो बुद्धि भी नहीं है . 
सृजन-पालन और विनाश भी किया अनेकों बार
पर क्या वो महत अहम् नहीं था? 

उससे कई प्रेम करते थे, घृणा करते थे 
पर वो किसीका शत्रु या मित्र नहीं था . 
जिसने कई लोगों से सीखा और कुछ सिखाया भी 
पर ना वो गुरु था ना शिष्य . 
जन्म-मरण के चक्र से वो गुज़र चूका था 
पिता-पुत्र, के चरित्र निभा चूका था . 

जो निर्विकल्प और अद्वैत है 
जो सर्वत्र है , जो शाश्वत है 
जो था, जो है और जो कल भी होगा 
क्या उसे आप जानते हैं ?