Saturday, 26 June 2010

kharaashein


सन १९४७ में आग और खून से लिपटी एक लकीर मुल्क को काटती हुई गुज़र गयी और मुल्क तकसीम हो गया ।
we perform Gulzaar's Kaharashein - play based on partition and communal riots.

Wednesday, 2 June 2010

untitled

ऐसे तो मैं खुश था ।
खुद को बेज़ार कर लिया था,
और तमन्ना को सिखा दिया
था सब्र ।

तन्हा लोगों की
बड़ी-सी भीड़ में,
अकेले ही सब के साथ-साथ
मैं चलता था,
न किसी से कोई तव्क्कू
न गिला कोई।

फिर तुम्हारे जाने का
ऐसा सदमा क्यूँ है ?
ख़ुशी का कम होना
ग़म क्यूँ है ?

Tuesday, 1 June 2010

उमस

औंधे कमरे में अब मेरा पता नहीं मिलता ।
न कोई आहट किसी हरकत की,
न जिस्म की बू कहीं ।
चेहरा और कमरे में बंद अँधेरा
एक दुसरे में समां चुके थे ,
उन्हें अलग करना मुश्किल था ।

आँखें धुप में जल गयीं थी ,
शहर के एहतमादी लू ने
साँसों का गला घोंट दिया था ।
रगों में बहता हुआ लहू
खुश्क आँखों को जज्बातों में डुबो कर
भिगो कर सूख चूका था ।

बहार से आवाज़ देना बेकार था,
नशा कोई भी नहीं - होश कहाँ था?
पर मुझे ख़बर थी
मैं उस कमरे में नहीं था ।